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ग़ज़ल
ये सच है अपनी क़िस्मत कोई कैसे देख सकता है
मगर मैं ताश के पत्ते उठा कर देख लेता हूँ
मोहम्मद अल्वी
ग़ज़ल
नया कम-ख़्वाब का लहँगा झमकते ताश की अंगिया
कुचें तस्वीर सी जिन पे लगा गोटा कनारी है