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ग़ज़ल
यक-क़लम काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा है सफ़्हा-ए-दश्त
नक़्श-ए-पा में है तब-ए-गर्मी-ए-रफ़्तार हुनूज़
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नशात-ए-रूह वज्ह-ए-गर्मी-ए-महफ़िल नहीं होता
वो इक नग़्मा जो आवाज़-ए-शिकस्त-ए-दिल नहीं होता
फ़ैज़ झंझानवी
ग़ज़ल
सर्दी-ओ-गर्मी-ओ-बरसात में आ जाता है
मुझ से मिलने वो मज़ाफ़ात में आ जाता है
मोहम्मद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
निकलती है तपिश में बिस्मिलों की बर्क़ की शोख़ी
ग़रज़ अब तक ख़याल-ए-गर्मी-ए-रफ़्तार क़ातिल है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हम ज़माने के रुख़-ओ-रफ़्तार की बातें करें
अब वो लुत्फ़-ए-गर्मी-ए-रफ़्तार-ए-जानाना गया
जयकृष्ण चौधरी हबीब
ग़ज़ल
शौक़ की आग नफ़स की गर्मी घटते घटते सर्द न हो
चाह की राह दिखा कर तुम तो वक़्फ़-ए-दरीचा-ओ-बाम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
चराग़-ए-ज़िंदगी है या बिसात-ए-आतिश-ए-रफ़्ता
जला कर रौशनी दहलीज़-ए-जाँ पर सोचते रहना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
गर्मी-ए-पहलू यही तश्कीक ओ ला-इल्मी की आँच
ज़ौक़-ए-गुमशुदगी से हम हैं बा-ख़बर या बा-हुनर