aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "tahat-al-lafz"
'शुजाअ' तेरे ही तहत-अल-लफ़्ज़ से कुछ हो तो हो वर्नाग़ज़ल में शाएरान-ए-ख़ुश-गुलू से कुछ नहीं होगा
वो तहत-उल-लफ़्ज़ हो या हो तरन्नुमग़ज़ल किस की है लहजा बोलता है
हर एक हर्फ़ शगूफ़ा हर एक लफ़्ज़ कँवल
ज़बाँ से ताक़त-ए-गुफ़्तार छीनने वालोतुम्हीं बताओ कि कब तक ज़बान बंद रहे
नोच फेंके लबों से मैं ने सवालताक़त-ए-शोख़ी-ए-जवाब नहीं
ग़ौर से देखिए तो हर चेहराएक लफ़्ज़-ए-हसीन से निकला
मोती मोती टटोलते रहिएएक इक लफ़्ज़ तोलते रहिए
हर एक लफ़्ज़ के मा'नी बदल गए 'माजिद'जहान-ए-शेर में ये ख़लफ़शार कैसा है
ताक़त-ओ-सब्र तहम्मुल मेराले के कुछ और ही फ़रमाइएगा
ग़म की दुनिया में ऐ मिरे मालिकताक़त-ए-सब्र-आज़माई दे
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भीतो किस उमीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है
जिस को पहरों होश तक आना न होउस में होगी ताक़त-ए-फ़रयाद क्या
उस ने इक इक लफ़्ज़ से सारा बदन छलनी कियासोच कर उम्मीद का है दोष सारा आ गए
आ कि मिरी जान को क़रार नहीं हैताक़त-ए-बेदाद-ए-इंतिज़ार नहीं है
प्यास बढ़ती हुई ता-हद्द-ए-नज़र पानी थारू-ब-रू कैसा अजब मंज़र-ए-हैरानी था
नाम सुनते ही आशियाने कालौट आई है ताक़त-ए-परवाज़
बोसे में वो मुज़ाइक़ा न करेपर मुझे ताक़त-ए-सवाल कहाँ
ताक़त-ए-परवाज़ ही जब खो चुकीफिर हुआ क्या गर हवा में पर खुले
अब वो आए तो आएँ क्या हासिलताक़त-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ ही नहीं
देख तो लेंगे वो अगर आएताक़त-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ न सही
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