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ग़ज़ल
अध-खुली तकिए पे होगी इल्म-ओ-हिकमत की किताब
वसवसों वहमों के तूफ़ानों में घर जाएँगे हम
ज़ेहरा निगाह
ग़ज़ल
मिरी आँखों से नींदें ले के तुम ने रतजगे बख़्शे
मिरे तकिए मिरे बिस्तर से रातें बात करती हैं
नसीम निकहत
ग़ज़ल
ख़त जो तेरे नाम लिखा, तकिए में छुपा के रखता हूँ
जाने किस उम्मीद पे ये ता'वीज़ दबा के रखता हूँ
अजमल सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं
तिरे तकिए के नीचे भी हमारे ख़्वाब रक्खे हैं
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
नींद मस्तों को कहाँ और किधर का तकिया
ख़िश्त-ए-ख़ुम-ख़ाना है याँ अपने तो सर का तकिया
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
वो जिस तकिए के नीचे से मिरी तस्वीर मिलती थी
किसी ने ख़्वाब उस तकिए पे वारे लाज़मी होंगे
अशफ़ाक़ अहमद साइम
ग़ज़ल
कहने वाला ख़ुद तो सर तकिए पे रख कर सो गया
मेरी बे-चारी कहानी रात भर रोती रही