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ग़ज़ल
इस मौज की टक्कर से साहिल भी लरज़ता है
कुछ रोज़ तो तूफ़ाँ की आग़ोश में पल जाए
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
कि अब की बार जान-ए-मन बहुत काँटे की टक्कर है
नया लड़का उधर है तो इधर शाइ'र पुराना है
तनोज दाधीच
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
हमारे गाँव की बातें निराली ही निराली हैं
कहीं टक्कर नहीं उस का सुकूनत में सुहूलत में
इरफान आबिदी मानटवी
ग़ज़ल
कुछ नहीं हासिल सिपर को चीर को या तलवार तोड़
है अगर ताक़त तो मेरे आँसुओं का तार तोड़
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
तेरे रॉकेट से भी ऐ यार मैं लेता टक्कर
मेरे क़ब्ज़े में अगर तख़्त-ए-सुलैमाँ होता
हाशिम अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
हज़ारों साल सर साहिल से टकराती रहीं मौजें
मिरी कश्ती से टक्कर ले के तूफ़ानों पे क्या गुज़री
फ़य्याज़ ग्वालियरी
ग़ज़ल
मर गया 'सिद्दीक़' कोह-ए-ग़म से टक्कर मार कर
सर में सौदा था मगर शौक़-ए-जबीं-साई न था