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ग़ज़ल
तलाफ़ी कुछ न कुछ हो जाए तकलीफ़-ए-तबस्सुम की
ज़रा ठहरो हम अपने दामनों की धज्जियाँ कर लें
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
यूँ भी तुम क्या हो फ़क़त ख़ाक 'तबस्सुम' बीबी
और फिर बैठनी है आ के कल इस ख़ाक पे ख़ाक
तबस्सुम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
कितनी अजब तक़्सीम 'तबस्सुम' करती है ये दुनिया भी
मेरा हिस्सा ज़हर-ए-हलाहल अमृत धारे उस के थे
कहकशाँ तबस्सुम
ग़ज़ल
सुन के रूदाद-ए-वफ़ा हँस के वो फ़रमाते हैं
ऐ 'तबस्सुम' तिरे अफ़्साने में क्या रक्खा है
तबस्सुम निगम देहलवी
ग़ज़ल
यूँही तो दिल-आवेज़ नहीं शे'र-ए-'तबस्सुम'
ये नक़्श तिरे हुस्न के साँचे में ढले हैं
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
क्या जानिए क्या था तिरा अंदाज़-ए-'तबस्सुम'
हर देखने वाले की नज़र मुझ पे पड़ी है
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
जिस में ग़म-ए-जानाँ की लताफ़त है 'तबस्सुम'
हम ने तो कई बार वही ज़हर पिया है
तबस्सुम निगम देहलवी
ग़ज़ल
जोश-ए-जुनूँ तबस्सुम-ए-गुल कुछ न पूछिए
दामन का ज़िक्र क्या है गरेबाँ नहीं रहे
तबस्सुम निगम देहलवी
ग़ज़ल
इन मध-भरी आँखों में क्या सेहर 'तबस्सुम' था
नज़रों में मोहब्बत की दुनिया ही सिमट आई