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ग़ज़ल
शाम तम्हीद-ए-ग़ज़ल रात है तकमील-ए-ग़ज़ल
दिन निकलते ही निकल जाती है जाँ हम-नफ़सो
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
जाने किस का हाशिया-बरदार है मेरा क़लम
हर कस-ओ-ना-कस की इस ने तर्जुमानी छोड़ दी
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
शाख़-ए-जज़्बात पे नग़्मात का मंज़र ख़ामोश
ग़म की आग़ोश में अरमाँ का कबूतर ख़ामोश
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
ग़ज़ल
अब इस 'आलम में तकमील-ए-मज़ाक़-ए-जुस्तुजू होगी
जहाँ हर गाम पर उन की ही सूरत हू-बहू होगी
हक़्क़ी हज़ीं
ग़ज़ल
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया