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ग़ज़ल
कभी साहिल पे रह कर शौक़ तूफ़ानों से टकराएँ
कभी तूफ़ाँ में रह कर फ़िक्र है साहिल नहीं मिलता
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
समंद-ए-नाज़ की टापों से सर टकराएँ सब आशिक़
पिला शर्बत शहादत का किसी दिन कासा-ए-सम से
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
हैं ज़ुल्म के पत्थर मिरे रस्ते में अंधेरे
टकराएँ जो आपस में तो किरनें भी बहुत हैं
दिलनवाज़ सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
कश्तियाँ मौज-ए-हवादिस से न टकराएँ कहीं
नाख़ुदा का ख़्वाब जैसे तिश्ना-ए-ता'बीर है