aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "talabgaar"
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँबाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ
हमरंगी-ए-मौसम के तलबगार न होतेसाया भी तो क़ामत के बराबर नहीं मिलता
अब दिल की तरफ़ दर्द की यलग़ार बहुत हैदुनिया मिरे ज़ख़्मों की तलबगार बहुत है
धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द थाइश्क़-ए-नबर्द-पेशा तलबगार-ए-मर्द था
तेरे होंठों के तबस्सुम का तलबगार हूँ मैंअपने ग़म बेच दे रद्दी का ख़रीदार हूँ मैं
कैसी जन्नत के तलबगार हैं तू जानता हैतेरी लिक्खी हुई दुनिया को मिटाते हुए हम
बस एक तिरे ख़्वाब से इंकार नहीं हैदिल वर्ना किसी शय का तलबगार नहीं है
फिर दर-ए-दिल पे कोई देने लगा है दस्तकजानिए फिर दिल-ए-वहशी का तलबगार है कौन
ज़हे-नसीब कि दुनिया ने तेरे ग़म ने मुझेमसर्रतों का तलबगार कर के छोड़ दिया
जो भी मिल जाता है घर-बार को दे देता हूँया किसी और तलबगार को दे देता हूँ
इंकार सुन चुके हैं तलबगार क्यूँ बनेंमिलता नहीं कोई तो है बे-फ़ाएदा पसंद
'आलम में कोई दिल का तलबगार न पायाइस जिंस का याँ हम ने ख़रीदार न पाया
मरहम के नहीं हैं ये तरफ़-दार नमक केनिकले हैं मिरे ज़ख़्म तलबगार नमक के
जिस को ज़ंजीर से मोहब्बत होहम तलबगार उस असीर के हैं
क्या ग़रज़ है मिरी तक़दीर को मुझ से पूछेआबरू का है तलबगार कि रुस्वाई का
माना तिरी नज़र में तिरा प्यार हम नहींकैसे कहें कि तेरे तलबगार हम नहीं
रानाई-ए-कौनैन से बे-ज़ार हमीं थेहम थे तिरे जल्वों के तलबगार हमीं थे
दाग़-ए-अतफ़ाल है दीवाना ब-कोहसार हुनूज़ख़ल्वत-ए-संग में है नाला तलब-गार हुनूज़
दुनिया ओ आख़िरत में तलबगार हैं तिरेहासिल तुझे समझते हैं दोनों जहाँ में हम
वो मोहब्बत-आफ़रीं देता है हस्ब-ए-ज़र्फ़-ए-इश्क़फिर किसी से भी तलब-गार-ए-वफ़ा होता नहीं
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