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ग़ज़ल
ज़ेहन ज़िंदा है मगर अपने सवालात के साथ
कितने उलझाओ हैं ज़ंजीर-ए-रिवायात के साथ
तनवीर अहमद अल्वी
ग़ज़ल
अभी तो आँखों में ना-दीदा ख़्वाब बाक़ी हैं
जो वक़्त लिख नहीं पाया वो बाब बाक़ी हैं
तनवीर अहमद अल्वी
ग़ज़ल
मिल भी जाता जो कहीं आब-ए-बक़ा क्या करते
ज़िंदगी ख़ुद भी थी जीने की सज़ा क्या करते
तनवीर अहमद अल्वी
ग़ज़ल
दर्द की लय को बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
और इस दिल को दुखा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
तनवीर अहमद अल्वी
ग़ज़ल
कमंद-ए-हल्क़ा-ए-गुफ़तार तोड़ दी मैं ने
कि मोहर-ए-दस्त-ए-क़लमकार तोड़ दी मैं ने
तनवीर अहमद अल्वी
ग़ज़ल
बज़्म-ए-जाँ फिर निगह-ए-तौबा-शिकन माँगे है
लम्स शो'ले का तो ख़ुश्बू का बदन माँगे है