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ग़ज़ल
ये वक़्त का है तक़ाज़ा कि है फ़रेब-ए-नज़र
कि बेटा बाप के क़द से बड़ा दिखाई दे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
बचे जुर्म-ए-ग़ुरूर-ए-पारसाई से भी हम वा'इज़
मज़े के साथ साथ इन लग़्ज़िशों का फ़ाएदा देखो