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ग़ज़ल
अभी वो कमसिन उभर रहा है अभी है उस पर शबाब आधा
अभी जिगर में ख़लिश है आधी अभी है मुझ पर इताब आधा
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
उन की महफ़िल में चली है मिरे अफ़्कार की बात
फ़िक्र ने मेरी सुझाई है मुझे दार की बात
तुफ़ैल दारा
ग़ज़ल
नज़र में जज़्ब शम्अ-ए-रुख़ का जल्वा कर लिया मैं ने
दिल-ए-तारीक में आख़िर उजाला कर लिया मैं ने