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ग़ज़ल
जो नंग-ए-चमन कहते हैं तारीख़ तो देखें
हम रूह-ए-चमन ज़ीनत-ए-गुलज़ार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
मकतब की आशिक़ी भी तारीख़-ए-ज़िंदगी थी
फ़ाज़िल था घर से मजनूँ लैला पढ़ी लिखी थी
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
रिवायात-ए-कुहन में दिलकशी बाक़ी नहीं 'अख़्तर'
नए अंदाज़ से तारीख़-ए-शहर-ए-गुल-रुख़ाँ लिखिए
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
ग़ज़ल
ख़ून-ए-जिगर से लिक्खी है तारीख़-ए-अह्द-ए-नौ
शाइ'र ने सब हक़ीक़तें शे'रों में ढाल कर
प्रकाश तिवारी
ग़ज़ल
जिस ने तारीख़-ए-गुलिस्तान-ए-मोहब्बत लिक्खी
पहले क़िस्सा मिरी बे-बाल-ओ-परी का लिक्खा
जलील फ़तेहपूरी
ग़ज़ल
फ़ारूक़ बाँसपारी
ग़ज़ल
तारीख़-ए-दीं-फ़रोशों में लिखेगी उन का नाम
जो शक्ल दे रहे हैं नए वाक़िआ'त को
माजिद जहाँगीर मिर्जा
ग़ज़ल
मैं किताब-ए-दिल में अपना हाल-ए-ग़म लिखता रहा
हर वरक़ इक बाब-ए-तारीख़-ए-जहाँ बनता गया