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ग़ज़ल
शिकस्ता-पर जुनूँ को आज़माएँगे नहीं क्या
उड़ानों के लिए पर फड़फड़ाएँगे नहीं क्या
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
हम ने सुना था सहन-ए-चमन में कैफ़ के बादल छाए हैं
हम भी गए थे जी बहलाने अश्क बहा कर आए हैं