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ग़ज़ल
हर इक लुग़त से मावरा मैं हूँ 'अजब मुहावरा
मेरी ज़बाँ में पढ़ मुझे दुनिया का तर्जुमा न मान
अभिषेक शुक्ला
ग़ज़ल
निहाँ है एक नुक़्ते में निज़ाम-ए-ज़िंदगानी
वजूद-ए-हर्फ़ तो है तर्जुमा गुम हो गया है
रफ़ी सिरसीवी
ग़ज़ल
मिरा हर शेर 'नाशिर' ज़िंदगी का तर्जुमा ठहरा
सुख़न में ढाल कर क़िस्से को बा-तफ़्सील कर आया
नाशिर नक़वी
ग़ज़ल
हम्ज़ा याक़ूब
ग़ज़ल
उस की आँखों से 'अयाँ है उस की निय्यत साफ़-साफ़
या'नी अज़-ख़ुद तर्जुमा गो है मोहब्बत साफ़-साफ़
ताहिर सऊद किरतपूरी
ग़ज़ल
उसी का तर्जुमा भर मेरी शा'इरी 'सानी'
वो एक लफ़्ज़ जो मुबहम सा मेरे कान में है