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ग़ज़ल
ये मुआ'मले हैं नाज़ुक जो तिरी रज़ा हो तू कर
कि मुझे तो ख़ुश न आया ये तरिक़-ए-ख़ानक़ाही
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
उन्हें एहसास-ए-तमकीं हो कहीं ऐसा न हो जाए
जो होना हो अभी ऐ जुरअत-ए-रिंदाना हो जाए