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ग़ज़ल
मिरे होने का ये तस्दीक़-नामा किस ने लिक्खा है
गवाही किस की मेरी ज़ात के महज़र पे रक्खी है
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
नाम-ए-'तस्कीं' पे ये मज़मून-ए-तपिश ना-ज़ेबा
था तख़ल्लुस जो सज़ा-वार तो बेताब मुझे
मीर तस्कीन देहलवी
ग़ज़ल
आक़िब साबिर
ग़ज़ल
उज़्र-ए-गुनाह दावर-ए-महशर से क्यूँ करूँ
ग़म मिट गया है नामा-ए-तक़दीर देख कर
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
'तस्कीं' ने नाम ले के तिरा वक़्त-ए-मर्ग आह
क्या जाने क्या कहा था किसी ने सुना नहीं
मीर तस्कीन देहलवी
ग़ज़ल
रूह की चीख़ें बदन में बहर-ए-तस्दीक़-ए-हयात
और तौसीक़-ए-नवा-ए-दिल तिरी यादों की गूँज
ज़ाइक़ बैंग्लोरी
ग़ज़ल
ज़ोर पर आह थी और नाला-ए-शब-गीर भी था
मानता हम को कभी ये फ़लक-ए-पीर भी था