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ग़ज़ल
हर तफ़्सील में जाने वाला ज़ेहन सवाल की ज़द पर है
हर तशरीह के पीछे है अंजाम से डर जाने का ग़म
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
हर गोशा-ए-मग़रिब में हर ख़ित्ता-ए-मशरिक़ में
तशरीह दिगर-गूँ है अब तेरे पयामों की
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
इक किताब-ए-सद-हुनर तशरीह-ए-ज़ाइल का शिकार
एक मोहमल बात जादू का असर करती हुई
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
खोल कर कीजिए तशरीह-ए-सर-ए-मिस्रा-ए-ज़ुल्फ़
इस नविश्ते में कुछ इबहाम अभी बाक़ी हैं