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ग़ज़ल
तन की दौलत मन की दौलत सब ख़्वाबों की बातें हैं
नौ मन तेल न हो तो घर में राधा को नचवाये कौन
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
हुई जिन से तवक़्क़ो' ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मोहब्बत सिर्फ़ कहने को तअल्लुक़ तेल पानी सा
रियाज़त उम्र भर करते रहे बे-कार जिस्मों की