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ग़ज़ल
ऐ चर्ख़-ए-फ़ित्ना-गर ये रवा है कि हर बरस
सहबा-कशों पे बाज की ठहराए मोहतसिब
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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ऐ चर्ख़-ए-फ़ित्ना-गर ये रवा है कि हर बरस
सहबा-कशों पे बाज की ठहराए मोहतसिब