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ग़ज़ल
मैं दामन थामता हूँ और अदा दामन छुड़ाती है
मोहब्बत है तो कुछ बे-गानगी भी पाई जाती है
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
लब बंद हों तो रौज़न-ए-सीना को क्या करूँ
थमता तो मुझ से नाला-ए-आतिश-इनाँ नहीं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
ग़ज़ल
नाला रुकता है तो सर-गर्म-ए-जफ़ा होता है
दर्द थमता है तो बे-दर्द ख़फ़ा होता है
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
ग़ज़ल
लब बंद हूँ तो रौज़न-ए-सीना को क्या करूँ
थमता तो मुझ से नाला-ए-आतिश-इनाँ नहीं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
ग़ज़ल
दर्द थमता ही नहीं सीने में आराम के बा'द
हम तो जलते हैं चराग़ों की तरह शाम के बा'द
मोहम्मद असकरी आरिफ़
ग़ज़ल
कहा मैं ने कि आँसू आँख का लेकिन नहीं थमता
कहा आँखें कोई तलवों से मल डाले अगर क्या हो
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
मिरे ख़ुदा नहीं थमता ये ज़ुल्म का तूफ़ान
और उस के सामने मुश्त-ए-ग़ुबार या'नी मैं