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ग़ज़ल
हक़ीक़त घोल रखता है वो रूमानों के पानी में
मनाज़िर ठोस देता है नज़र सय्याल देता है
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
ठेस लगी है कैसी दिल पर हम से खिंचे से रहते हो
आख़िर प्यारे आया कैसे इस शीशे में बाल कहो