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ग़ज़ल
आओ 'नादाँ' आज उस नासूर का मातम करें
जो ख़िराज-ए-ज़िंदगी ले कर भी हम को खा गया
इंद्र सुरूप दत्त नादान
ग़ज़ल
वो दिन भी कोई दूर नहीं ऐ दिल-ए-‘नादाँ’
ये तोहमतें भी होंगी मिरी ज़ात का ज़ेवर
इंद्र सुरूप दत्त नादान
ग़ज़ल
वक़्त के नादाँ परिंदे ज़ोम-ए-दानाई के गिर्द
ख़ूब-सूरत ख़्वाहिशों के दाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
शिकस्त-ओ-फ़त्ह का ज़िम्मा नहीं दिल-ए-नादाँ
लड़े हज़ार में ये काम है सिपाही का
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
शिद्दत-ए-ज़ब्त की लज़्ज़त को घटा देती हैं
आँखें नादान हैं क्यों अश्क बहा देती हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
दिल-ए-नादाँ अभी ख़ूगर नहीं ये ग़म उठाने का
उठेगी तेरे दर से ये जबीं आहिस्ता आहिस्ता
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
वो तिफ़्ल-ए-मकतब-ए-रस्म-ए-वफ़ा हमीं तो न थे
जो अपनी यादों का मेला लगा के बैठ रहे
शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा
ग़ज़ल
यूँ लगा रखी है दिल से ज़िंदगी की आरज़ू
जैसे तिफ़्ल-ए-जाँ-ब-लब मज़दूर की आग़ोश में
अब्ब्दुर्रऊफ़ शाहिद अंसारी
ग़ज़ल
तसव्वुर बहर-ए-तस्कीन-ए-तपीदन-हा-ए-तिफ़्ल-ए-दिल
ब-बाग़-ए-रंग-हा-ए-रफ़्ता गुल-चीन-ए-तमाशा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तुम्हारा ग़म भी किसी तिफ़्ल-ए-शीर-ख़ार सा है
कि ऊँघ जाता हूँ मैं ख़ुद उसे सुलाते हुए
रहमान फ़ारिस
ग़ज़ल
आँखों ने बे-क़रारी-ए-तिफ़्ल-ए-सरिश्क से
पैदा किया है मादन-ए-सीमाब का ख़वास