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ग़ज़ल
नमाज़ें मुस्तक़िल पहचान बन जाती है चेहरों की
तिलक जिस तरह माथे पर कोई हिन्दू लगाता है
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
ग़म-ब-दिल शुक्र-ब-लब मस्त ओ ग़ज़ल-ख़्वाँ चलिए
जब तिलक साथ तिरे उम्र-ए-गुरेज़ाँ चलिए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
पहुँच चुका है ज़माना ज़मीं से चाँद तिलक
कहाँ मैं ज़ुल्फ़, नज़र, गाल में पड़ा हुआ हूँ
हाशिम रज़ा जलालपुरी
ग़ज़ल
उस के प्यार में 'क़ैसर' साहब आज तिलक मैं ज़िंदा हूँ
जिस ने मेरे अरमानों को क़त्ल किया है पहली बार
क़ैसर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हमारा हिन्द भी यूरोप से ले जाएगा बाज़ी
तिलक जैसे मोहिब्बान-ए-वतन हों इंडियन पहले
विनायक दामोदर सावरकर
ग़ज़ल
बन सके जो आप के मग़रूर माथे का तिलक
क्या हमारे ख़ून की सुर्ख़ी भी इस क़ाबिल नहीं