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ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
मर्द-ए-दरवेश का सरमाया है आज़ादी ओ मर्ग
है किसी और की ख़ातिर ये निसाब-ए-ज़र-ओ-सीम
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
और हैं वो जो ज़र-ओ-सीम पे रखते हैं नज़र
हम तो इंसान को किरदार से पहचानते हैं
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
ग़ज़ल
सब कुछ अल्लाह ने दे रक्खा है माल-ओ-ज़र-ओ-सीम
हैं मगर अहल-ए-दुवल अक़्ल-ओ-ख़िरद के मुहताज
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
नर्गिस की ज़र-ओ-गुल पे भी वा चश्म-ए-तमा है
इस पर कि ज़र-ओ-सीम का उस पास तबक़ है