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ग़ज़ल
अव्वल तो ये धज और ये रफ़्तार ग़ज़ब है
तिस पे तिरे पाज़ेब की झंकार ग़ज़ब है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
तिस पे कम-बख़्त की ये दूसरी सघड़ाई देख
बाँध रुमालों से बसमे की बचाई मेहंदी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
एक साहब 'मीर' जन्मे तिस पे इक ग़ालिब हुए
फिर ग़ज़ल-गोई में करने को नया कुछ भी नहीं
आशुतोष तिवारी
ग़ज़ल
इस रफ़्तगी पे मुझ से करता है तू तग़ाफ़ुल
डाँटे है तिस पे उल्टा फिर बार बार मुझ को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
'इश्क़ बरता ही नहीं तू ने अभी तक 'साक़िब'
तिस पे दा'वा है नहीं कोई सुख़न-वर तुझ सा
अमीर हम्ज़ा साक़िब
ग़ज़ल
मुसाफ़िर हो के आए हैं जहाँ में तिस पे वहशत है
क़यामत थी अगर हम इस ख़राबा में वतन करते
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
ग़ज़ल
लिबास-ए-पम्बई बिन क्यूँके गुज़रे मौसम-ए-सर्मा
क़यामत है ये तेरी सर्द-मेहरी तिस पे ये सर्दी
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
एक तो बैठे हो दिल को मिरे खो और सुनो
तिस पे कहते हो ''दिया है तुझे'' लो और सुनो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
वज़्अ सुबुक उस की थी तिस पे न रखता था रीश
मूछैं थीं और कानों पर पट्टे भी थे पुम्बा-साँ