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ग़ज़ल
ज़ब्त-ए-ग़म से लाख अपनी जान पर बन आए है
हाँ मगर ये इज़्ज़त-ए-सादात तो रह जाए है
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
तिश्नगी होगी जहाँ बे-साख़्ता नौहा-कुनाँ
उस जगह हम दास्तान-ए-कर्बला ले जाएँगे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
इक लफ़्ज़ याद था मुझे तर्क-ए-वफ़ा मगर
भूला हुआ हूँ ठोकरें खाने के बअ'द भी
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
इत्र-फ़शाँ शमीम-ए-गुल बाद-ए-सबा लतीफ़-तर
ताज़ा-कुन-ए-मशाम-ए-जाँ गेसू-ए-मुश्क-बू भी है
प्रेम शंकर गोयला फ़रहत
ग़ज़ल
करो न ज़िक्र सुबू ज़र-निगार है कि नहीं
इलाज-ए-तिश्नगी-ए-बादा-ख़्वार है कि नहीं