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ग़ज़ल
उक्ता के हम ने तोड़ी थी ज़ंजीर-ए-नाम-ओ-नंग
अब तक फ़ज़ा में है वही झंकार देखिए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
अक़ील नोमानी
ग़ज़ल
ये कैसी आग भर कर जाम में पीर-ए-मुग़ाँ रख दी
जो तोड़ी मेहर-ए-साग़र से तो कुछ उट्ठा धुआँ रख दी
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ज़िंदगी जिस्म के ज़िंदाँ में ये साँसों की सलीब
हम से तोड़ी नहीं जाती है मगर टूटती है
सलीम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
लॉन में बैठा दरवाज़े पर दस्तक सुन कर चौंक पड़ा
कौन है जिस ने वहशत तोड़ी मुझ सा पत्थर चौंक पड़ा
इमरान राहिब
ग़ज़ल
'निज़ाम' इस नफ़्स-ए-अम्मारा की गर्दन भी कभी तोड़ी
जवाँ-मर्दी का दम तुम ने अगर मारा तो क्या मारा
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
याद है भीगा था तेरा जिस्म जब बारिश के बा'द
किस तरह तोड़ी थी मैं ने अपनी ऐनक याद है