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ग़ज़ल
मिरे सज्दा-हा-ए-नियाज़ को तिरे आस्ताँ की तलाश है
किसी फ़र्द की ये तलब नहीं ये तो इक जहाँ की तलाश है
अमीर रज़ा मज़हरी
ग़ज़ल
कमाल-ए-ज़ौक़-ए-सज्दा इस से बढ़ कर और क्या होगा
वहीं वो नक़्श-ए-पा उभरा जहाँ रख दी जबीं मैं ने
ओम प्रकाश लाग़र
ग़ज़ल
असर करता नहीं बिन सज्दा-ए-तस्लीम के नाला
हम इस मिस्रा पे ग़ैर-अज़-हल्क़ा-ए-क़द साद क्या कीजे
वली उज़लत
ग़ज़ल
अदम में तरसोगे दर्द-ए-जिगर को ऐ 'तस्लीम'
जो हो सके कोई सीने पे तीर खाए चलो
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
मैं हूँ ऐ 'तस्लीम' शागिर्द-ए-'नसीम'-ए-देहलवी
चाहिए उस्ताद का तर्ज़-ए-बयाँ पैदा करूँ
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
जब से ऐ 'तस्लीम' की है बैअ'त-ए-दस्त-ए-सुबू
दीन साग़र हो गया ईमान मीना हो गया
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
क्या रुके ख़ामा-ए-'तस्लीम' दम-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न
तब' में आज है दरिया की रवानी वा'इज़
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
आस क्या अब तो उमीद-ए-ना-उमीदी भी नहीं
कौन दे मुझ को तसल्ली कौन बहलाए मुझे