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ग़ज़ल
दिल फ़क़्र की दौलत से मिरा इतना ग़नी है
दुनिया के ज़र-ओ-माल पे मैं तुफ़ नहीं करता
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
दिखाती है जो ये दुनिया वो बैठा देखता हूँ मैं
है तुफ़ मुझ पर तमाशा-बीन हो कर रह गया हूँ मैं
अरशद जमाल सारिम
ग़ज़ल
मैं तो समझा था बुझावेंगे कुछ आँसू तुफ़-ए-दिल
ये तो और आग को भड़का के चले आते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
तुफ़ है उन आँखों पे जो ख़ुद में उलझ कर रह जाएँ
वो निगह क्या जो यहाँ ताके वहाँ झाँके नहीं
शमीम अब्बास
ग़ज़ल
तुझ पे तुफ़ है कि तुझे हुस्न का 'इरफ़ान नहीं
तू ने आवारा समझ रक्खा है लैलाई को
फ़ातिमा हुसैनी मख़्फ़ी
ग़ज़ल
क्यूँकर ये तुफ़-ए-अश्क से मिज़्गाँ में लगी आग
शबनम से कहीं भी है नियस्ताँ में लगी आग