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ग़ज़ल
हर धड़कन हैजानी थी हर ख़ामोशी तूफ़ानी थी
फिर भी मोहब्बत सिर्फ़ मुसलसल मिलने की आसानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
क्या जाने कब किस साअत में तब्अ' रवाँ हो जाए
ये दरिया बे-मौसम भी तुग़्यानी करता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी दिल पर गुज़रता है
कि आँसू ख़ुश्क हो जाते हैं तुग़्यानी नहीं जाती
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
कभी दरिया उठा लाते हैं अपनी टूटी कश्ती में
कभी इक क़तरा-ए-शबनम से तुग़्यानी भी करते हैं
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
उभरता ही नहीं दिल डूब कर बहर-ए-मोहब्बत में
जब आ जाती है इस दरिया में तुग़्यानी नहीं जाती
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
सवेरा होते होते रोज़ आ जाते हैं साहिल पर
सफ़ीने रात भर दरिया की तुग़्यानी में रहते हैं
शमीम हनफ़ी
ग़ज़ल
जिन सफ़ीनों ने कभी तोड़ा था मौजों का ग़ुरूर
उस जगह डूबे जहाँ दरिया में तुग़्यानी न थी
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
समुंदर की हर इक शय पर हमारी दस्तरस थी
कि तुग़्यानी भी अपनी थी किनारा ही नहीं था
अरशद जमाल सारिम
ग़ज़ल
तीन जगह से मेरे गले को मिस्ल-ए-शुतुर ये काटते हैं
दीन-ए-मोहम्मदी है जो ख़लीली उस की ये तुग़्यानी है