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ग़ज़ल
मेरे रोने पे वो हँस हँस के ये कहना तेरा
कि तुनुक-ज़र्फ़ से छुपते कभी असरार नहीं
मुंशी बिहारी लाल मुश्ताक़ देहलवी
ग़ज़ल
क़ैस को इश्क़ की तकरीम थी शायद कम-कम
हम तुनक-ज़र्फ़ नहीं इश्क़ जो अफ़्साना बने
सय्यद बशीर हुसैन बशीर
ग़ज़ल
मैं बहक जाऊँ तो ये मेरी तुनुक-ज़र्फ़ी है
और अगर नश्शा न हो किस की हतक है साक़ी
एहसास मुरादाबादी
ग़ज़ल
प्यार में कम तो नहीं कम-निगही भी उस की
हाँ तुनक-ज़र्फ़ी-ए-एहसास कुशादा भी तो हो
गौहर होशियारपुरी
ग़ज़ल
क़तरा अपना भी हक़ीक़त में है दरिया लेकिन
हम को तक़लीद-ए-तुनुक-ज़र्फ़ी-ए-मंसूर नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बे-एतिदालियाँ मिरी ज़र्फ़-ए-तुनक से हैं
था नक़्स कुछ न जौहर-ए-सहबा-ए-नाब में