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ग़ज़ल
उस फ़ित्ना-ख़ू के दर से अब उठते नहीं 'असद'
उस में हमारे सर पे क़यामत ही क्यूँ न हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अब तो हाथ सुझाई न देवे लेकिन अब से पहले तो
आँख उठते ही एक नज़र में आलम सारा गुज़रे था
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता
ये उठते बैठते ज़िक्र-ए-वफ़ा अच्छा नहीं लगता
आशुफ़्ता चंगेज़ी
ग़ज़ल
अल्लाह रे सोज़-ए-आतिश-ए-ग़म बा'द-ए-मर्ग भी
उठते हैं मेरी ख़ाक से शो'ले हवा के साथ