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ग़ज़ल
मिरे अश्क भी हैं इस में ये शराब उबल न जाए
मिरा जाम छूने वाले तिरा हाथ जल न जाए
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
कम-ज़र्फ़ पुर-ग़ुरूर ज़रा अपना ज़र्फ़ देख
मानिंद जोश-ए-ग़म न ज़ियादा उबल के चल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
निकलें तो शिकस्तों के अँधेरे उबल आएँ
रहने दो जो किरनें मिरी आँखों में गड़ी हैं