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ग़ज़ल
वो जफ़ा-शिआ'र ओ सितम-अदा तू सुख़न-तराज़ ओ ग़ज़ल-सरा
वो तमाम काँटे उगाएँगे तू तमाम फूल खिलाए जा
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
दरीचों को तो देखो चिलमनों के राज़ तो समझो
उठेंगे पर्दा-हा-ए-बाम-ओ-दर आहिस्ता आहिस्ता
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
सवाल आख़िर ये इक दिन देखना हम ही उठाएँगे
न समझे जो ज़मीं के ग़म वो अपना आसमाँ क्यूँ हो
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
उट्ठेंगे अभी और भी तूफ़ाँ मिरे दिल से
देखूँगा अभी इश्क़ के ख़्वाब और ज़ियादा
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
दस्त-ओ-पा रखते हैं और बे-कार क्यों बैठे रहें
हम उठेंगे अपनी क़िस्मत को बनाने के लिए