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ग़ज़ल
ज़मीं ने ख़ून उगला आसमाँ ने आग बरसाई
जब इंसानों के दिल बदले तो इंसानों पे क्या गुज़री
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
पिछले सफ़र में जो कुछ बीता बीत गया यारो लेकिन
अगला सफ़र जब भी तुम करना देखो तन्हा मत करना
शहरयार
ग़ज़ल
वो न अगला बाग़बाँ है अब न अगले हम-सफ़ीर
याद करता हूँ क़फ़स को मैं गुलिस्ताँ देख कर