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ग़ज़ल
इतनी देर में उजड़े दिल पर कितने महशर बीत गए
जितनी देर में तुझ को पा कर खोने का इम्कान हुआ
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
पहले भी ख़िज़ाँ में बाग़ उजड़े पर यूँ नहीं जैसे अब के बरस
सारे बूटे पत्ता पत्ता रविश रविश बर्बाद हुए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
चेहरे पे उड़ती गर्द थी बालों में राख थी
शायद वो हम-सफ़र मिरे उजड़े नगर का था
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
कुछ इतने याद माज़ी के फ़साने हम को आए हैं
कि जिन राहों में उजड़े थे उन्ही पर लौट आए हैं
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
सैर कर उजड़े दिलों की जो तबीअ'त है उदास
जी बहल जाते हैं अक्सर इन्हीं वीरानों में