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ग़ज़ल
उलझना ख़ुद से रह रह कर नज़र से गुफ़्तुगू करना
ये अंदाज़-ए-सुख़न उस को निगहबानी से आया है
फ़सीह अकमल
ग़ज़ल
कच्ची उम्र में कल के दुखों से आज उलझना ठीक नहीं
पहला सावन भीगने वालो शाद रहो आबाद रहो
ख़ालिद मोईन
ग़ज़ल
बनो ताहिरा सईद
ग़ज़ल
उलझना है हमें बंजर ज़मीनों की हक़ीक़त से
उन्हें क्या वो तो बस काग़ज़ पे फुलवारी दिखाते हैं