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ग़ज़ल
उल्टी है न उल्टेंगे नक़ाब-ए-रुख़-ए-रौशन
माना है न मानेंगे वो कहना मिरे दिल का
मिर्ज़ा मायल देहलवी
ग़ज़ल
दरीचों को तो देखो चिलमनों के राज़ तो समझो
उठेंगे पर्दा-हा-ए-बाम-ओ-दर आहिस्ता आहिस्ता
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
उट्ठेंगे अभी और भी तूफ़ाँ मिरे दिल से
देखूँगा अभी इश्क़ के ख़्वाब और ज़ियादा
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
दस्त-ओ-पा रखते हैं और बे-कार क्यों बैठे रहें
हम उठेंगे अपनी क़िस्मत को बनाने के लिए
सय्यद सादिक़ हुसैन
ग़ज़ल
वो आवेंगे मिरे घर वा'दा कैसा देखना 'ग़ालिब'
नए फ़ित्नों में अब चर्ख़-ए-कुहन की आज़माइश है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
यक़ीं है सुब्ह-ए-क़यामत को भी सुबूही-कश
उठेंगे ख़्वाब से साक़ी सुबू सुबू करते