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ग़ज़ल
नहीं ये है गुलाल-ए-सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे
ये आशिक़ की है उमड़ी आह-ए-आतिश-बार होली में
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
फ़र्क़ नहीं पड़ता हम दीवानों के घर में होने से
वीरानी उमड़ी पड़ती है घर के कोने कोने से
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
हम तिश्ना-दहन बैठे हैं मयख़ाने मैं 'आसी'
उमड़ी हुई बरसात ने दिल तोड़ दिया है