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ग़ज़ल
अगर इरफ़ान-ए-हस्ती उक़्दा-ए-मुश्किल नहीं होता
तो फिर इंसानियत का कोई मुस्तक़बिल नहीं होता
इफ़्तिख़ार अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
गुज़र रहा हूँ जुनूँ की जिलौ में ऐ 'मुश्किल'
ये ज़ौक़ ले के चला है कहाँ नहीं मा'लूम
शैख़ हसन मुश्किल अफ़कारी
ग़ज़ल
दुनिया में अभी तक बाक़ी हैं जाबिर भी कई ज़ालिम भी कई
हैरत तो यही है ऐ 'मुश्किल' इंसान सभी कहलाते हैं
शैख़ हसन मुश्किल अफ़कारी
ग़ज़ल
'मुश्किल' अगरचे अज़्म करें पुख़्तगी के साथ
नज़्म-ए-चमन बदल के रहें आज ही से हम
शैख़ हसन मुश्किल अफ़कारी
ग़ज़ल
शैख़ हसन मुश्किल अफ़कारी
ग़ज़ल
मुझे ये डर है हर हर उज़्व मेरा दिल न बन जाए
मोहब्बत का ये उक़्दा उक़्दा-ए-मुश्किल न बन जाए
अमजद नजमी
ग़ज़ल
साक़ी की एक ही निगह-ए-इल्तिफ़ात में
मुश्किल हमारा उक़्दा-ए-मुश्किल नहीं रहा
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
ग़ज़ल
वाए क़िस्मत पड़ गई कैसी गिरह-ए-तक़दीर में
उक़्दा-ए-मुश्किल नज़र आती है आसानी मुझे
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
तिरे दर के सिवा सज्दों को बहलाने कहाँ जाते
हम आख़िर उक़्दा-ए-मुश्किल को सुलझाने कहाँ जाते