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ग़ज़ल
वो बन कर बे-ज़बाँ लेने को बैठे हैं ज़बाँ मुझ से
कि ख़ुद कहते नहीं कुछ और कहलवाते हैं हाँ मुझ से
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
बयान मेरठी
ग़ज़ल
उम्र गुज़री इन बुतों के वस्ल की तदबीर में
क्या ख़बर मुझ को ये पत्थर थे मिरी तक़दीर में
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
लिखा जो यार को मज़मून-ए-वस्ल का काग़ज़
हवा-ए-शौक़ में फिर कर हवा हुआ काग़ज़