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ग़ज़ल
तुझे वाजिब है जाना उर्स में अपने शहीदों के
सुना हूँ मैं कि उन का आज संदल कल चराग़ाँ है
ज़का मीर औलाद मोहम्मद ख़ान
ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बद-तर ख़िज़ाँ से है हमें इस बाग़ की बहार
बोई निफ़ाक़ फूल में ही ज़हर फल में है
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
उस के सौदाइयों को नाम-ओ-निशाँ से मतलब
बे-निशाँ लोग हैं ये इश्क़-ओ-मोहब्बत वाले
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
मैं ने कहा कनार-ए-नाज़ चाहिए इस ग़मीं से पुर
सुन के रक़ीब-ए-ज़िश्त को पास बिठा लिया कि यूँ