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ग़ज़ल
ख़ार-ओ-ख़स-ओ-ख़ाशाक तो जानें एक तुझी को ख़बर न मिले
ऐ गुल-ए-ख़ूबी हम तो अबस बदनाम हुए गुलज़ार के बीच
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हम-नफ़स-ओ-हबीब-ए-ख़ास बनते हैं ग़ैर किस तरह
बोली ये सर्द-मेहरी-ए-उम्र-ए-गुरेज़-पा कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
कोई बादा-कश जिसे मय-कशी का तरीक़-ए-ख़ास न आ सका
ग़म-ए-ज़िंदगी की कशा-कशों से कभी नजात न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
मिरी नज़र में हैं उस्लूब-ए-नक़्द-ओ-फ़िक्र-ओ-सुख़न
मिरे वुजूद का इंकार तेरे बस में नहीं
फ़रताश सय्यद
ग़ज़ल
उस्लूब-ए-नज़्म-ए-'अकबर' फ़ितरत से है क़रीं-तर
अल्फ़ाज़ हैं महल पर मा'नी मकान पर हैं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
ग़ज़ल की आबरू तुम हो ग़ज़ल मुझे महबूब
शऊर-ए-फ़िक्र को उस्लूब-ए-ख़ुश-नुमा दे दो
अब्दुल मन्नान तरज़ी
ग़ज़ल
प्यार में कोई फ़सीलें जो उठाए भी तो क्या
तुम तो ख़ुद लज़्ज़त-ए-उस्लूब-ए-वफ़ा भूल गए
जाज़िब क़ुरैशी
ग़ज़ल
शोले की जूँ मदद करे दूद-ए-नख़स्त-ए-ख़ार-ओ-ख़स
मिस्सी से और धुआँ हुईं होंटों की उस की लालियाँ