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ग़ज़ल
ख़ुशियाँ मत दे मुझ को दर्द-ओ-कैफ़ की दौलत दे साईं
मुझ को मेरे दिल के इक इक ज़ख़्म की उजरत दे साईं
शाहिद कमाल
ग़ज़ल
अपनी नादारी पे क्यों दाग़ लगाए तू ने
ते पे रख छोड़े हैं दो नुक़्ते ये उसरत कैसे
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
अपने जितने हैं वो बेगाना हुए उसरत में
कोई मिलने नहीं आता है परेशाँ के पास