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ग़ज़ल
ख़ुद में उतरें तो पलट कर वापस आ सकते नहीं
वर्ना क्या हम अपनी गहराई को पा सकते नहीं
शाहीन अब्बास
ग़ज़ल
फ़ज़ा में महकी हुई चाँदनी कि नग़्मा-ए-राज़
कि उतरें सीना-ए-शाइर में जिस तरह नग़्मात
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
ईद को है नाज़नीनों सेहत-ए-'नाज़िम' का जश्न
हों नई आराइशें उतरें पुरानी चूड़ियाँ
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
सारी बातों की है इक बात कि कुछ बातों से
दिल में उतरे हुए भी दिल से उतर जाते हैं
शगुफ़्ता नईम हाश्मी
ग़ज़ल
जीना हो अब कि मरना डूबें कि पार उतरें
कश्ती है अपनी 'शाएक' हाथों में नाख़ुदा के
रियाज़त अली शाइक
ग़ज़ल
सारे शहर को चाँदनी की ख़ैरात उस रोज़ मैं बाँटूँ
जिस दिन ख़्वाहिश के आँगन में छम से उतरें परियाँ