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ग़ज़ल
कर गया है दिल को हर इक वाहिमे से बे-नियाज़
रूह को लेकिन अजब सी बे-क़रारी दे गया
इफ़्तिख़ार नसीम
ग़ज़ल
बद-गुमाँ 'इश्क़ को सद वहम-ओ-यक़ीं के खटके
शोख़ी-ए-चश्म सुख़न-साज़ है ग़म्माज़ जुदा
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
हाँ तुझ से बेवफ़ाई की उम्मीद तो नहीं
पर सच कहूँ तो दिल में कई वाहिमे हैं यार
हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
अपने रंगों को तमाशे का कोई शौक़ नहीं
मोर जंगल में ही रहते हैं वहीं नाचते हैं