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ग़ज़ल
हम वफ़ा-केशों का ईमाँ भी है परवाना-सिफ़त
शम-ए-महफ़िल जो वो काफ़िर न रहा और सही
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
हम वफ़ा-केशों के दम से है ये सतवत ये उरूज
आप के हम हैं तो ये जाह-ओ-हशम आप के हैं
इफ़्तिख़ार अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
तुम उसी को वज्ह-ए-तरब कहो हम उसी को बाइ'स-ए-ग़म कहें
वही इक फ़साना-ए-इश्क़ है कभी तुम कहो कभी हम कहें
क़मर मुरादाबादी
ग़ज़ल
मैं समझता हूँ तुझे मेरी वफ़ा याद नहीं
तू समझता है मुझे तेरी जफ़ा याद नहीं