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ग़ज़ल
गाह क़रीब-ए-शाह-रग गाह बईद-ए-वहम-ओ-ख़्वाब
उस की रफ़ाक़तों में रात हिज्र भी था विसाल भी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
मैं मुज़्तरिब हूँ वस्ल में ख़ौफ़-ए-रक़ीब से
डाला है तुम को वहम ने किस पेच-ओ-ताब में
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कभी ये ज़ोम कि तू मुझ से छुप नहीं सकता
कभी ये वहम कि ख़ुद भी छुपा हुआ हूँ मैं