aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "vaqt-haa-e-suu-e-haram"
वो वक़्त-हा-ए-सू-ए-हरम जब चले थे हमदामान-कश ख़याल-ए-बुताँ देर तक रहा
शैख़ मयख़ाने से जब सू-ए-हरम आते हैंसर झुकाए हुए बा-दीदा-ए-नम आते हैं
रह चुका दैर-ओ-कलीसा में बहुत मुद्दत तकऐ जुनूँ सू-ए-हरम अब तो मुझे जाने दो
दैर से सू-ए-हरम आया न टुकहम मिज़ाज अपना इधर लाए बहुत
सू-ए-हरम-ओ-दैर कभी रुख़ न करेंगेजिन को मिरे साक़ी की है रंगीं-नज़री याद
आँख सू-ए-हरम-ओ-दैर कभी उठ जातीइश्क़ की राह में ये भी तो गवारा न हुआ
सू-ए-हरम या तरफ़-ए-बुत-कदाअल-ग़रज़ ऐ शैख़ जिधर जाइए
लब्बैक कह के सू-ए-हरम हो गया रवाँनुत्क़-ए-ख़लील से जिसे आवाज़ दी गई
अपनी तलाश में हूँ 'सबा' इस लिए अभीसू-ए-हरम सफ़र का इरादा नहीं किया
क़दम उठते थे कहाँ सू-ए-हरम अपने 'अदीम'आज मुश्किल नज़र आई तो ख़ुदा याद आया
सू-ए-हरम ही मुड़ें हम ये क्या ज़रूरी हैतिरी गली से कई रास्ते निकलते हैं
सू-ए-हरम चले थे बड़े एहतिमाम सेक़िस्मत की बात राह में बुत-ख़ाना आ गया
कम-बख़्त सू-ए-दैर-ओ-हरम भाग रही हैंगुलशन की हवाओं को सनकना भी न आया
अपनी रुख़्सत है बुतों से भी अब इंशा-अल्लाहदैर से सू-ए-हरम आज ही कल जाता हूँ
'ज़ीशान' तुम ने दिल को सनम-ख़ाना कर लियाअब क्या करोगे सू-ए-हरम सर झुका के तुम
लौटा है ले के ज़ह्न में आशोब-ए-ज़िंदगीदिल का ग़ज़ाल सू-ए-हरम मुद्दतों के बाद
एक ही मंज़िल पे जा कर मिल गए दोनों 'ज़हीन'वो चले सू-ए-हरम हम कू-ए-जानाँ की तरफ़
तुझ को साक़ी तिरा मय-ख़ाना मुबारक हम तोअब चले सू-ए-हरम ख़ैर तुम्हें क्या इस से
अहल-ए-दिल चलने लगे जब भी सू-ए-दैर-ओ-हरममुंतज़िर उस राह में हर बार मयख़ाने मिले
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